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{{KKRachna
|रचनाकार=विजय कुमार पंत
}}
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शायद कुछ वर्षों बाद
राह तो होगी
पर सफ़र नहीं होंगे
दर्द तो होंगे
पर असर नहीं होंगे
शायद
कुछ वर्षों बाद
हवा बाज़ारों में बिकेगी
सांसों के लिए लोग लडेंगे
दूध की जगह
आंसू पी पी कर
बच्चे पलेंगे , बढ़ेंगे
शायद
कुछ वर्षों बाद
रिश्ते तो होंगे
मगर अहसास नहीं होंगे
दो लिपटे हुए बदन भी
एक दुसरे के पास नहीं होंगे
शायद
कुछ वर्षों बाद
प्यास होगी ,पर प्यार नहीं होगा
शब्द होंगे ,मगर सार नहीं होगा
समय भी होगा , संघर्ष भी होगा
सत्य होगा मगर आधार नहीं होगा
शायद
कुछ वर्षों बाद
हम आज के इस विकास से कल का विनाश लायेंगे
गर्मी तो गर्मी , बदन बर्फ से जल जायेंगे
न पेड़ होंगे , न छाँव होगी
हम अपनी आने वाली सभ्यताओं को
हवा और पानी भी नहीं दे पाएंगे
शायद
कुछ वर्षों बाद
</poem>
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|रचनाकार=विजय कुमार पंत
}}
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<poem>
शायद कुछ वर्षों बाद
राह तो होगी
पर सफ़र नहीं होंगे
दर्द तो होंगे
पर असर नहीं होंगे
शायद
कुछ वर्षों बाद
हवा बाज़ारों में बिकेगी
सांसों के लिए लोग लडेंगे
दूध की जगह
आंसू पी पी कर
बच्चे पलेंगे , बढ़ेंगे
शायद
कुछ वर्षों बाद
रिश्ते तो होंगे
मगर अहसास नहीं होंगे
दो लिपटे हुए बदन भी
एक दुसरे के पास नहीं होंगे
शायद
कुछ वर्षों बाद
प्यास होगी ,पर प्यार नहीं होगा
शब्द होंगे ,मगर सार नहीं होगा
समय भी होगा , संघर्ष भी होगा
सत्य होगा मगर आधार नहीं होगा
शायद
कुछ वर्षों बाद
हम आज के इस विकास से कल का विनाश लायेंगे
गर्मी तो गर्मी , बदन बर्फ से जल जायेंगे
न पेड़ होंगे , न छाँव होगी
हम अपनी आने वाली सभ्यताओं को
हवा और पानी भी नहीं दे पाएंगे
शायद
कुछ वर्षों बाद
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