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Kavita Kosh से
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भीड़ कस उठी थी, पच्चर से लोग बन गए,
वह दबाव था, जौ भर किअसी किसी तरह हिल पाना
अब असाध्य था । खड़े लोग निरुपाय तन गए ।
जो छूटा, छूटा; अब मुश्किल था मिल पाना ।