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द्वितीय अंक / भाग 5 / रामधारी सिंह "दिनकर"
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12:25, 26 जुलाई 2010
मुझको मिलें, जो शूल हों,
प्रियतम जहां भी हों, बिछे सर्वत्र पथ में फूल हों.
<font style="font-size:25px">द्वितीय अंक समाप्त</font>
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