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|रचनाकार=शास्त्री नित्यगोपाल कटारे
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कितनी दफा दफ़ा मिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
यादों कर सिलसिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
ये है हमारे प्यार का इकलौता राजदारराज़दारक्या -क्या न गुल खिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
पत्तों की पायजेब गुलों की मोहर गले
गहने गजब गज़ब मिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
पूरब से हम चले थे पच्छिम से आये आए तुम
दो दिल यहाँ मिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
पल में तुम्हारा रूठना और मेरा मनाना
नखरे हैं , चोचले हैं , इस गुलमोहर के नीचे
अब भी अधूरे हैं जो किये किए थे कभी यहींवायदों के काफिले काफ़िले हैं इस गुलमोहर के नीचे
अनचाहे वाकये भी यहाँ हैं दबे पड़े
शिकवे हैं कुछ गिले हैं इस गुलमोहर के नीचे
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