Changes

नक्श-ए-जाँ ए जाना ना
नक्श-ए-जाँ मिटा दूँ क्या
मुझ को लिख के खत ख़त जानम
अपने ध्यान में शायद
ख्वाबख़्वाब-ख्वाब जस्बो ख़्वाब जज़्बों केख्वाबख़्वाब-ख्वाव लम्हो ख़्वाब लम्हों में यूँ ही बेखयाल बेख़याल आना और खयाल ख़याल आने पर
मुझ से डर गई हो तुम
ज़ुर्म जुर्म के तस्सवुर में गर ये खत ख़त लिखे तुमने
फिर तो मेरी राय में
ज़ुर्म जुर्म ही किये तुमने ज़ुर्म क्यो जुर्म क्यों किये जाए जाएँ ज़ुर्म जुर्म हो तो खत ख़ही क्यो क्यों लिखे जाए जाएँ
</poem>