{{KKCatGhazal}}
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काम करेगी उसकी धारबाकी लोहा है बेकार कैसे बच सकता था मैंपीछे ठग थे आगे यार बोरी भर मेहनत पीसूँ निकले इक मुट्ठी भर सार भूखे को पकवान लगेंचटनी, रोटी, प्याज, अचार जीवन है इक ऐसी डोरगाठें जिसमें कई हजार सारे तुगलक चुन-चुन करहमने बना ली है सरकार शुक्र है राजा मान गयादो दूनी होते हैं चारटूट टूट जाने तलक गिरा मुझको
कैसी मिट्टी का हूँ बता मुझको