{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार: [[=नागार्जुन]][[Category:कविताएँ]]|संग्रह=[[Category:नागार्जुन]]}}{{KKCatKavita}}~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~<Poem>'स्वेत-स्याम-रतनार' अंखिया अँखिया निहार के
सिण्डकेटी प्रभुओं की पग-धूर झार के
लौटे हैं दिल्ली से कल टिकट मार के
खिले हैं दांत दाँत ज्यों दाने अनार के आये आए दिन बहार के !
बन गया निजी काम-
दिलाएंगे और अन्न दान के, उधार के
टल गये संकट यू.पी.-बिहार के
लौटे टिकट मार के
आये आए दिन बहार के !
सपने दिखे कार के
गगन-विहार के
सीखेंगे नखरे, समुन्दर-पार के
लौटे टिकट मार के
आए दिन बहार के !
आये दिन बहार के !रचनाकाल : 1966 १९६६ में लिखी गई</poem>