}}
[[Category:देशभक्ति]]
<poem>
सर फ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।
सर फ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है<br>करता नहीं क्यूं दूसरा कुछ बात चीतदेखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल देखता हूं मैं जिसे वो चुप तिरी मेहफ़िल में है।<br><br>
करता नहीं क्यूं दूसरा कुछ बात चीत<br>देखता हूं ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं जिसे वो चुप तिरी मेहफ़िल तेरे ऊपर निसारअब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल में है।<br><br>
वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ शहीदे-मुल्को-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार<br>आसमाँअब तेरी हिम्मत का चर्चा ग़ैर की महफ़िल हम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल में है।<br><br>
वक़्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमाँ<br>खींच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उम्मीदहम अभी से क्या बताएं क्या हमारे दिल आशिक़ों का आज झमघट कूचा-ए-क़ातिल में है।<br><br>
खींच कर लाई है सब को क़त्ल होने की उम्मीद<br>लिए हथियार दुश्मन ताक़ में बैठा उधरऔर हम तैयार हैं सीना लिए अपना इधरआशिक़ों का आज झमघट कूचा-ए-क़ातिल खून से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल में है।<br><br>
है लिए हथियार दुश्मन ताक़ हाथ जिन में बैठा उधर<br>हो जुनून कटते नहीं तलवार सेऔर हम तैयार सर जो उठ जाते हैं सीना लिए अपना इधर<br>खून वो झुकते नहीं ललकार से खेलेंगे होली गर वतन मुश्किल और भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल में है।<br><br>
हाथ जिन में हो जुनून कटते नहीं तलवार हम तो घर से<br>निकले ही थे बांध कर सर पे क़फ़नसर जो उठ जाते जान हथेली पर लिए लो बढ चले हैं वो झुकते नहीं ललकार से<br>ये क़दमऔर भड़केगा जो शोला सा हमारे दिल ज़िंदगी तो अपनी मेहमाँ मौत की महफ़िल में है।<br><br>
हम तो घर से निकले ही थे बांध कर सर पे क़फ़न<br>दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इंक़िलाब जान हथेली पर लिए लो बढ चले हैं ये क़दम<br>होश दुशमन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आजज़िंदगी तो अपनी मेहमाँ मौत की महफ़िल दूर रह पाए जो हम से दम कहां मंज़िल में है।<br><br>
दिल में तूफ़ानों की टोली और नसों में इंक़िलाब <br>होश दुशमन के उड़ा देंगे हमें रोको ना आज<br>दूर रह पाए जो हम से दम कहां मंज़िल में है।<br><br> यूं खड़ा मक़तल में क़ातिल कह रहा है बार बार<br>क्या तमन्ना-ए-शहादत भी किसी के दिल में है।<br><br/poem>