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धमकितनी सुन्दर थीवह नन्हीं-धमाधम, धम-धमाधम, धम-धमाधमसी चिड़ियालो आ गया एक और नया वर्षकितनी मादकता थीढोल बजाता, रक्त बहाताकण्ठ में उसकेहिंसक भेड़ियों के साथजो लाँघ कर सीमाएँ सारीये वे ही भेड़िए हैंडर कर जिनसेकी देती थी गुहार आदिमानव नेआप्लावितअपने प्रभु से-विस्तार को विराट के 'दूर रखो हमें हिंसक भेड़ियों से'हाँ, ये वे ही भेड़िए कहते हैंजो चबा रहे हैं इन्सानियत इन्सान कीवह मौन हो गई है-और पहना रहे हैं पोशाकें उन्हेंसत्ता की, शैतान की, धर्म की, धर्मान्धता कीपर उसका संगीत तोऔर पहनकर उन्हें मर गया आदमीभी कर रहा है गुंजरित-सचमुचतन-मन कोदिगदिगन्त कोजीव उठी वर्दियाँ और कुर्सियाँइसीलिए कहा हैजो खेलती हैं नाटकमहाजनों ने किसद्भावना कामौन ही मुखर है, समानता कानिकालकर रैलियाँ लाशों की,मुबारक हो, मुबारक हो,नई रैलियों का यह नया युगतुमको, हमको और उन भेड़ियों को भीसबको मुबारक हो,धम-धमाधम, धम-धमाधम, धम-धमाधमकि वामन ही विराट है ।
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