भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मेरे बाहर आग है,
इस आग का अर्थ जानते हो ?
 
क्या तपन, क्या दहन,
क्या ज्योति, क्या जलन,
ये अर्थ हैं कोष के, कोषकारों के
जीवन की पाठशाला के नहीं,
 
जैसे जीवन,
वैसे ही आग का अर्थ है,
कर सकोगे क्या संघर्ष ?
पा सकोगे मुक्ति, माया के मोहजाल से ?
 
पा सकोगे तो आलोक बिखेरेंगी ज्वालाएँ
नहीं कर सके तो
और
आदमीयत के वजूद को
 
शेष रह जाएगा, बस वह
जो स्वयं नहीं जानता
कि
वह है, या नहीं है ।
 
हम
हम प्रतिभा के वरद पुत्र
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,616
edits