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प्रेम कवि / मुकेश मानस

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उन्होंने प्रेम पर कविताएं सुनाईं
श्रोताओं ने खूब तालियां बजाईं
वो फूल कर कुप्पा हो उठे
और अपनी कुर्सी पर जा डटे

जब अगले कवि
प्रेम पर कविता सुनाने लगे
तो उनको चक्कर से आने लगे
अपनी मार्केट खोने के डर सताने लगे
तो वो उपहार में मिले फूलों को
नौंचने मसलने लगे

धन्य हे बिकाऊ महाकवि
आप तो सचमुच के उत्तर-आधुनिक लगे
2004

<poem>
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