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नवागमन / अशोक लव

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<poem>
गूंजी एक किलकारी
गर्भाशय से निकल
ताकने लगा नवजात शिशु
छत, दीवारें, मानव देहें

प्रसव पीड़ा भूल
मुस्कुरा उठी माँ
सजीव हो उठे
पिता के स्वपन

बंधी संबंधों की नई डोर
तीन प्राणियों के मध्य
हुई पूर्णता
नारी और पुरुष के वैवाहिक संबंधो की

नन्हे शिशु के संग जागी
आशाएँ

पुनः तैरने लगे
नारी और पुरुष के मध्य
नए-नए स्वपन
नवजात शिशु को लेकर
</poem>
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