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{{KKRachna
|रचनाकार=रविकांत अनमोल
|संग्रह=
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
महब्बत का सिला पूछो, न दुनिया की हवा पूछो
वही बातें पुरानी पूछते हो कुछ नया पूछो
तरक्की के म'आनी जानने की हो अगर चाहत
तो जिसने जांफ़िशानी की है, उसको क्या मिला पूछो
हमारा हौसला देखो, न पूछो पैर के छाले
हमारी इब्तिदा क्या देखते हो इंतिहा पूछो
जलाओ घर कोई इस आग से या प्यार के दीपक
मगर ये क्या कि जलती आग से उसकी रज़ा पूछो
</poem>
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महब्बत का सिला पूछो, न दुनिया की हवा पूछो
वही बातें पुरानी पूछते हो कुछ नया पूछो
तरक्की के म'आनी जानने की हो अगर चाहत
तो जिसने जांफ़िशानी की है, उसको क्या मिला पूछो
हमारा हौसला देखो, न पूछो पैर के छाले
हमारी इब्तिदा क्या देखते हो इंतिहा पूछो
जलाओ घर कोई इस आग से या प्यार के दीपक
मगर ये क्या कि जलती आग से उसकी रज़ा पूछो
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