भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
न था कुछ तो ख़ुदा था, कुछ न होता तो ख़ुदा होता,<br />
डुबोया मुझको होने ने न मैं होता तो क्या होता !<br />
हुई मुद्दत कि 'ग़ालिब' मर गया पर याद आता है,<br />वह वो हर एक इक बात पर कहना कि यों यूँ होता तो क्या होता !<br />