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05:07, 1 सितम्बर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा
|संग्रह=धूप से रूठी चाँदनी / सुधा ओम ढींगरा
}}
<poem>
भीतर का आँगन
जब गन्दला गया,
तो एक झाड़ू बनाया
जिसके तीलें हैं सोच के
बंधा है विवेक के धागों से.
बुहार दी उससे ....
अतृप्त इच्छायों की धूल,
कुंठाओं की मिट्टी,
वेदनाओं का कूड़ा,
जलन की कर्कट.
झाड़ दीं उससे...
विद्रूपताओं और
वर्जनाओं से सनी
मन की खिड़कियाँ,
निखर आया है अब
मेरा आँगन.
खिड़कियों से
झाँकती धूप और
सरकती चाँदनी
का अलौकिक सुख,
कभी भीतर कदम रखना
</poem>