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आलू पर्व / मनोज श्रीवास्तव

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पचा-खचा कर भी
बना ही रहा निरंकुश शैतान,
उसने हिंसक धर्म और आत्मघाती सम्प्रदाय बनाए,
हृदयविभाजक-भूविच्छेदक सरहद बनाए,
दर्पित-दम्भित राष्ट्रों में
आह! हमने
सेक्सी फूलों, हिंसक जानवरों
आलसी चांद- सितारों को बनाए--
अपने प्रतीक-चिह्न हजारों,
असंख्य शोषितों-अशिष्टों
कोई आलू-दिवस,
सो, आज के दिन
आओ, ! हम सब
मनाएँ हिल-मिल,
तुम्हारे लिए एक दिन