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पुल और बाढ़ / ओम पुरोहित ‘कागद’

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<Poem>
पुल
जो बाढ़ मे बह गया था
सड़क से कुछ कह गया था
सुना भी था सड़क ने
तभी तो
रह गयी थी स्तब्ध
और
ठहर गई थी दोनों ओर
जहां तक थे सर्पीले छोर।
बाढ़ भी
कुछ न कुछ
जरूर कह गई थी आदमी से
मगर
उसने कुछ नही सुना
समझा नहीं कुछ।
वह
आज भी बनाता है,
बना रहा है पुल
जो कुछ दिन
कुछ पल
लड़ता है बाढ़ से
और फिर बह जाता है बाढ़ में
रह जाता है शेष
आदमी के भीतर दंभ
जो रखती है जारी
ऎसा बौना संघर्ष।
</poem>
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