भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सरस्वती / बुद्धिनाथ मिश्र

33 bytes removed, 19:39, 4 सितम्बर 2010
|संग्रह=शिखरिणी / बुद्धिनाथ मिश्र
}}
[[Category:नवगीत]]{{KKCatNavgeet}} <poem>
अपनी चिट्ठी बूढ़ी माँ
 
मुझसे लिखवाती है ।
 
जो भी मैं लिखता हूँ
 
वह कविता हो जाती है ।
 
कुशल-क्षेम पूरे टोले का
 
कुशल-क्षेम घर का
 
बाट जोहते मालिक की
 
बेबस चर-चाँचर का ।
इतनी छोटी-सी पुर्जी पर
 
कितनी बात लिखूँ
 
काबिल बेटों के हाथों
 
हो रहे अनादर का ।
 
अपनी बात जहाँ आई
 
बस, चुप हो जाती है ।
 
मेरी नासमझी पर यों ही
 
झल्ला जाती है ।
 
कभी-कभी जब भूल
 
विधाता की मुझको छेड़े
 
मुझे मुरझता देख
 
दिखाती सपने बहुतेरे ।
कहती-- तुम हो युग के सर्जक
 
बेहतर ब्रह्मा से
 
नीर-क्षीर करने वाले
 
हो तुम्ही हंस मेरे ।
 
फूलों से भी कोमल
 
शब्दों से सहलाती है ।
 
मुझे बिठाकर राजहंस पर
 
सैर कराती है ।
 
कभी देख एकान्त
 
सुनाती कथा पुरा-नूतन
 
ऋषियों ने किस तरह किए
 
श्रुति-मंत्रों के दर्शन ।
कैसे हुआ विकास सृष्टि का
 
हरि अवतारों से
 
वाल्मीकि ने रचा द्रवित हो
 
कैसे रामायण ।
 
कहते-कहते कथा
 
शोक-विह्वल हो जाती है ।
 
और तपोवन में अतीत के
 
वह खो जाती है ।
(रचनाकाल :19.6.1996)
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits