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Kavita Kosh से
हम सिद्क़-ओ-इबादत से कभी अज़्म-ओ-अदा से
आगोश में मिल आ जाए समंदर जो वफ़ा का
हम अलविदा दुनिया के, किनारों से कहेंगे
क़िस्सा उड़ी रंगत का, बहारों से कहेंगे
आँखों में जो रोशन हैं जल जाते, वफ़ाओं वफ़ा के जो कई जुगनू
ज़ज़्बात ये “श्रद्धा” के, हज़ारों से कहेंगे
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