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{{KKRachna
|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मानस
}}
{{KKCatKavita
}}
<poem>
एक
बार-बार टूटता है हौसला
और बार-बार जुड़ता है
फिर से टूट जाने के लिए
दो
खुद को सहेजने की कोशिश में
बिखर-बिखर जाता हूँ
बार-बार सिलता हूँ खुद को
और उधड़-उधड़ जाता हूँ।
तीन
बार-बार खोजता हूँ रास्ता
और भटक जाता हूँ बार-बार
जहाँ से करता हूँ शुरूआत
फिर वहीं पहुँच जाता हूँ
2005
<poem>
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|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मानस
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एक
बार-बार टूटता है हौसला
और बार-बार जुड़ता है
फिर से टूट जाने के लिए
दो
खुद को सहेजने की कोशिश में
बिखर-बिखर जाता हूँ
बार-बार सिलता हूँ खुद को
और उधड़-उधड़ जाता हूँ।
तीन
बार-बार खोजता हूँ रास्ता
और भटक जाता हूँ बार-बार
जहाँ से करता हूँ शुरूआत
फिर वहीं पहुँच जाता हूँ
2005
<poem>