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{{KKRachna
|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मानस
}}
{{KKCatKavita
}}
<poem>
कुछ जाना, कुछ अनजाना सा
कुछ अपना, कुछ बेगाना सा
वो चेहरा जबसे देखा है
मैं रहता हूँ दीवाना सा
शाद भी है, नाशाद भी है
नाबाद भी है, आबाद भी है
कभी भुलाने की कोशिश
तो कभी एक फरियाद भी है
पास भी है, कुछ दूर भी है
मग़रूर भी है, मजबूर भी है
प्यार में वो बदनाम भी है
और प्यार भरा एक नूर भी है
वो चेहरा जबसे देखा है
मैं रहता हूँ दीवाना सा
2004
<poem>
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|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मानस
}}
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कुछ जाना, कुछ अनजाना सा
कुछ अपना, कुछ बेगाना सा
वो चेहरा जबसे देखा है
मैं रहता हूँ दीवाना सा
शाद भी है, नाशाद भी है
नाबाद भी है, आबाद भी है
कभी भुलाने की कोशिश
तो कभी एक फरियाद भी है
पास भी है, कुछ दूर भी है
मग़रूर भी है, मजबूर भी है
प्यार में वो बदनाम भी है
और प्यार भरा एक नूर भी है
वो चेहरा जबसे देखा है
मैं रहता हूँ दीवाना सा
2004
<poem>