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{{KKRachna
|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मानस
}}
{{KKCatKavita
}}
<poem>
एक
बादल की तरह बरस जाना चाहता हूँ
सागर की तरह फैल जाना चाहता हूँ
पहाड़ की तरह उठ जाना चाहता हूँ
पंछी की तरह उड़ जाना चाह्ता हूँ
फूल की तरह महक जाना चाहता हूँ
बसंत की तरह खिल जाना चाहता हूँ
तुम्हारे प्यार में
दो
जैसे बादल जानता है आसमान को
जैसे पानी जानता है सागर को
जैसे पत्थर जानता है पहाड़ को
जैसे महक जानती है फूल को
जैसे पत्ता जानता है वृक्ष को
जैसे बसंत जानता है धरा को
ऐसे ही जानता हूँ मैं तुम्हें
तुम्हारे प्यार में
2009
<poem>
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|रचनाकार=मुकेश मानस
|संग्रह=काग़ज़ एक पेड़ है / मुकेश मानस
}}
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एक
बादल की तरह बरस जाना चाहता हूँ
सागर की तरह फैल जाना चाहता हूँ
पहाड़ की तरह उठ जाना चाहता हूँ
पंछी की तरह उड़ जाना चाह्ता हूँ
फूल की तरह महक जाना चाहता हूँ
बसंत की तरह खिल जाना चाहता हूँ
तुम्हारे प्यार में
दो
जैसे बादल जानता है आसमान को
जैसे पानी जानता है सागर को
जैसे पत्थर जानता है पहाड़ को
जैसे महक जानती है फूल को
जैसे पत्ता जानता है वृक्ष को
जैसे बसंत जानता है धरा को
ऐसे ही जानता हूँ मैं तुम्हें
तुम्हारे प्यार में
2009
<poem>