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<poem>
'''जिन्दगी'''
जिसने भी देखा
मुंह फेरकर चल दिया
बेबस पड़ी थी जिन्दगी 1990 '''घर'''
बरतन सूखे हैं
बच्चे भूखे हैं
चूल्हा ठंडा पड़ा है
बाप कहीं पीकर पड़ा है 1988
'''रात'''
चूहे जगते सारी रात
भगते फिरते सारी रात
बरतन बजते सारी रात
1992
।। 1 ।।
जो जिन्दगी से दूर है
वो शायरी मशहूर है
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