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देखा हुआ सा कुछ / निदा फ़ाज़ली

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{{KKRachna
|रचनाकार= निदा फ़ाज़ली
}}
[[Category:गज़ल]]

देखा हुआ सा कुछ है <br>
:तो सोचा हुआ सा कुछ <br>
हर वक़्त मेरे साथ है<br>
:उलझा हुआ सा कुछ<br><br>
होता है यूँ भी रास्ता<br>
:खुलता नहीं कहीं<br>
जंगल-सा फैल जाता है<br>
:खोया हुआ सा कुछ<br><br>
साहिल की गीली रेत पर<br>
:बच्चों के खेल-सा <br>
हर लम्हा मुझ में बनता <br>
:बिखरता हुआ सा कुछ <br><br>
फ़ुर्सत ने आज घर को सजाया <br>
:कुछ इस तरह <br>
हर शय से मुस्कुराता है <br>
:रोता हुआ सा कुछ <br><br>
धुँधली-सी एक याद किसी <br>
:क़ब्र का दिया <br>
और! मेरे आस-पास <br>
:चमकता हुआ सा कुछ<br><br>

कभी-कभी यूँ भी हमने अपने जी को बहलाया है<br>
जिन बातों को खुद नहीं समझे, औरों को समझाया है