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Kavita Kosh से
हथियारों की फसलों के बजाय
गुच्छेदार गुलदार इंसानियत वाले
आदमी उगेंगे,
गुमसुम भूतों की सफेद आंखों में
अफसोस के बादल घुमड़ते हुए
आखिर, ऐसा आलम क्यों हैं,
भूत खुश क्यों नहीं हैं
चुनिन्दा बडे बड़े लोगों से
जो कमसिन आजादी को नंगी कर
उसे भरपूर भोग रहे हैं
बेशक! आजादी के खबरनामचों से
भूत पीडित पीड़ित क्यों हैं ?
वे हर बात पर
और मायूस क्यों हैं ?
जबकि आजादी के मिसाल बने
धर्माधीश, सियासतदार और सामाजिक गुर्गे