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क्या अदा है ! / अलका सर्वत मिश्रा

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ये है
मुझे पददलित करने की
तुम्हारी एक और कोशिश
पर ये कामयाब नहीं होगी

बहुत झेले हैं

बरसों से
तुम्हारी बातें, तुम्हारी चालें
तमाम सरकारी आश्वासनों जैसे
तुम्हारे नुस्खे

दबने की एक सीमा होती है
जब दबाव ज्यादा हो जाये
तो फट जाता है
ज्वालामुखी
और समेट लेता है
अपनी आग में
हजारों बस्तियों को
हजारों शहरों को

और फिर
बस राख बचाती है
जश्न मनाने के लिए
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