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Kavita Kosh से
भीमकाय समय के कदमों पर
मैं खड़ा हूं
हां, खड़ा ही हूं --
जमीन कोड़ता हुआ
और वह बरसों से वहीं खड़ा है--
अपनी हथेलियों पर
भूत, भविष्य और वर्तमान
वह कब तक यहां जमा रहेगा
ताश खेलते हुए मवालियों पर
फ़ब्तियां कसता रहेगा,
जबकि मेरे साथ ढलता जाएगा
मेरा ख्याल--
जो बाद मेरे भी
बूढ़े लोगों के दिमाग में बना रहेगा--
जेब में हाथ डाले हुए बाबुओं के होठों पर
तिल-तिल कर दम तोड़ रही
---सिगरेट की तरह।