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|रचनाकार=इक़बाल
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{{KKCatGhazal}}<poem>
तिरे इश्क़ की इंतहा चाहता हूँ
मिरी सादगी देख, क्या चाहता हूँ
कोई बात सब्र-आज़मा <ref>धैर्य की परीक्षा लेने वाली</ref> चाहता हूँ
वो जन्नत मुबारक रहे ज़ाहिदों<ref>धैर्य की परीक्षा लेने वाली</ref> को
कि मैं आपका सामना चाहता हूँ
कोई दम का मेहमाँ हूँ ऎ अहले-महफ़िल
चिराग़े-सहर<ref>भोर का दीया</ref> हूँ बुझा चाहता हूँ
भरी बज़्म में राज़ की बात कह दी
बड़ा बे-अदब<ref>असभ्य</ref> हूँ सज़ा चाहता हूँ
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