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Kavita Kosh से
वक़्त की त्योरियाँ भी उतरेंगी
और थोड़ा-सा इंतज़ार सही
जो नज़ारे नज़र नहीं आते
उन नज़ारों नज़ारों की यादगार सही
नाउम्मीदी से लाख बेहतर है