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खुश हुए मार कर ज़मीरों को / शेरजंग गर्ग
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12:14, 18 सितम्बर 2010
कृश्न के देश में सुशासन जन,
कन
कब
तलक यों हरेंगे चीरों को?
चलती चक्की को देखकर हँसते,
हाय, क्या हो गया कबीरों को।
लूट
,
नफ़रत, तनातनी, हिंसा,
कब मिटाओगे इन लकीरों को?
</poem>
द्विजेन्द्र द्विज
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