भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: <poem> चलो इश्क़ नहीं चाहने की आदत है के क्या करें हमें दू्सरे की आदत ह…
<poem>
चलो इश्क़ नहीं चाहने की आदत है
के क्या करें हमें दू्सरे की आदत है

तू अपनी शीशा-गरी का हुनर न कर ज़ाया
मैं आईना हूँ मुझे टूटने की आदत है

मैं क्या कहूँ के मुझे सब्र क्यूँ नहीं आता
मैं क्या करूँ के तुझे देखने की आदत है

तेरे नसीब में ऐ दिल सदा कि मह्रूमी
ना वो सखी ना तुझे मांगने की आदत है

विसाल में भी वोही है फ़िराक़ का आलम
के उसको नींद मुझे रत-जगे की आदत है

ये मुश्क़िलें हों तो कैसे रास्ते तय हों
मैं ना सुबूर उसे सोचने की आदत है

ये ख़ुद-अज़ियती कब तक "फ़राज़" तु भी उसे
ना याद कर जिसे भूलने की आदत है</poem>
139
edits