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सरहपा / परिचय

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/* एक और परिचय */
डॉ. विश्वंभरनाथ उपाध्याय ने उन पर दो प्रामाणिक पुस्तकें सरहपा (विनिबंध, 1996 ई.) तथा सिद्ध सरहपा (उपन्यास, 2003 ई.)लिख कर प्रकाशित करवाई हैं। तिब्बती ग्रंथ स्तन्-ग्युर में सरहपा की 21 कृतियाँ संगृहीत हैं। इनमें से 16
कृतियाँ अपभ्रंश या पुरानी हिन्दी में हैं, जिनके अनुवाद भोट भाषा में मिलते हैंः हैं : (1) दोहा कोश-गीति, (2) दोहाकोश नाम चर्यागीति, (3) दोहाकोशोपदेश गीति, (4) क.ख. दोहा नाम, (5) क.ख. दोहाटिप्पण, (6) कायकोशामृतवज्रगीति, (7) वाक्कोशरुचिरस्वरवज्रगीति, (8) चित्तकोशाजवज्रगीति, (9) कायवाक्चित्तामनसिकार, (10) दोहाकोश महामुद्रोपदेश, (11) द्वादशोपदेशगाथा, (12) स्वाधिष्ठानक्रम, (13) तत्त्वोपदेशशिखरदोहागीतिका,(14) भावनादृष्टिचर्याफलदोहागीति, (15) वसंत- तिलकदोहाकोशगीतिका तथा (16) महामुद्रोपदेशवज्रगुह्यगीति। उक्त कृतियों में सर्वाधिक प्रसिद्धि दोहाकोश को ही मिली है। अन्य पाँच कृतियाँ उनकी संस्कृत रचनाएँ हैं-(1) बुद्धकपालतंत्रपंजिका, (2) बुद्धकपालसाधन, (3) बुद्धकपालमंडलविधि, (4)त्रैलोक्यवशंकरलोकेश्वरसाधन एवं (5) त्रैलोक्यवशंकरावलोकितेश्वरसाधन। राहुलराहुल सांकृत्यायन ने इन्हें सरह की प्रारंभिक रचनाएँ माना है, जिनमें से चौथी कृति के दो और अंशों के भिन्न अनुवादकों द्वारा किए गए अनुवाद स्तन्-ग्युर में शामिल हैं, जिन्हें स्वतंत्र कृतियाँ मानकर राहुलजी सरह की सात संस्कृत कृतियों का उल्लेख करते हैं।
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