Changes

वह आती थी / पूनम तुषामड़

1,403 bytes added, 12:38, 24 सितम्बर 2010
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पूनम तुषामड़ |संग्रह=माँ मुझे मत दो / पूनम तुषाम…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=पूनम तुषामड़
|संग्रह=माँ मुझे मत दो / पूनम तुषामड़
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
वह आती थी
मेरे घर
सफाई-बर्तन करने को
मैं उसे पगार के साथ
देती सम्मान
वह अक्सर
खाती मेरे हाथ का
पका खाना
और कहती
दीदी, मुझे भी
सिखा दो बनाना
मेरी तारीफ
वह अक्सर करती
गांव से भी प्रायः
फोन किया करती
अपनी हर छोटी-बड़ी बात
मुझे बताया करती
इस तरह वह नज़दीकी अपनी
मुझसे जताया करती
फिर एक दिन
उसने बताया
वह गांव से
वापस क्यों
आ गई है ?
दीदी! अब क्या बताऊं ?
हम बुरे फंस गए हैं
हमारे घर के आस-पास
भंगी बस गए हैं
उनकी हमसे क्या
बराबरी है?
वे जन्मना नीच हैं
हमारी ऊंची बिरादरी है
</poem>