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साथ रोती थी मेरे साथ हंसा करती थी
वो लड़की जो मेरे दिल में बसा करती थी

मेरी चाहत की तलबगार थी इस दर्जे की
वो मुसल्ले पे नमाज़ों में दुआ करती थी

एक लम्हे का बिछड़ना भी गिरां था उसको
रोते हुए मुझको ख़ुद से जुदा करती थी

मेरे दिल में रहा करती थी धड़कन बनकर
और साये की तरह साथ रहा करती थी

रोग दिल को लगा बैठी अंजाने में
मेरी आगोश में मरने की दुआ करती थी

बात क़िस्मत की है ‘फ़राज़’ जुदा हो गए हम
वरना वो तो मुझे तक़दीर कहा करती थी
</poem>
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