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रचनाकारः [[{{KKRachna|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]][[Category:कविताएँ]]}}[[Category:सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]{{KKPrasiddhRachna}}{{KKCatKavita}}<poem>वह आता--दो टूक कलेजे को करता, पछताता पथ पर आता।
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एक,चल रहा लकुटिया टेक,मुट्ठी भर दाने को — भूख मिटाने कोमुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता —दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।
वह आतासाथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाए,बाएँ से वे मलते हुए पेट को चलते,और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाए।भूख से सूख ओठ जब जातेदाता-<br>भाग्य विधाता से क्या पाते?दो टूक कलेजे घूँट आँसुओं के करता पछताता <br>पीकर रह जाते।पथ चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर आता।<br><br>खड़े हुए,और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए !
पेट पीठ दोनों मिलकर हैं एकठहरो ! अहो मेरे हृदय में है अमृत,<br>मैं सींच दूँगाचल रहा लकुटिया टेक,<br>अभिमन्यु जैसे हो सकोगे तुममुट्ठी भर दाने को-- भूख मिटाने को <br>मुँह फटी पुरानी झोली का फैलाता--<br>दो टूक कलेजे के करता पछताता पथ पर आता।<br><br> साथ दो बच्चे भी हैं सदा हाथ फैलाये,<br>बायें से वे मलते हुए पेट को चलते,<br>और दाहिना दया दृष्टि-पाने की ओर बढ़ाये।<br>भूख से सूख ओठ जब जाते<br>दाता-भाग्य विधाता से क्या पाते?--<br>घूँट आँसुओं के पीकर रह जाते।<br>चाट रहे जूठी पत्तल वे सभी सड़क पर खड़े हुए,<br>और झपट लेने को उनसे कुत्ते भी हैं अड़े हुए!तुम्हारे दुख मैं अपने हृदय में खींच लूँगा।
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