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साहिल के रेतों पर या फिर लहरों पर
इत-उत जो भी लिखती है पुरवाई, लिख
रात ने जाते-जाते क्या कह डाला था
बूढ़े बह्‍र पे ग़ज़लों में तरुणाई लिख
''({मासिक हंस, सितम्बर 2010)}''
</poem>
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