आँगन की निबौरी की गंध उड़ रही है ।
छज्जे के छप्पर के अंदर बाँस से बिज्जु (साँप) <ref>वनियर</ref> नीचे सरक रहा है ।
रास्ते को दोपहर की धूप का जंग लगा था,
वह अब धुल गया है ।
मैं दुविधा में खड़ा रहता हूँ
तभी अमलतास पूरा ही मुझ पर बरस पड़ता है ।
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'''मूल गुजराती भाषा से अनुवाद : पारुल मशर'''
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