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{{KKRachna
|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=लिखे में दुक्ख / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
पिता ने मुझे विरासत में
कई चाभियां दी
मैं एक-एक कर खोलता रहा दरवाजे
दुनिया का कोई दरवाजा
मेरी चाभी से नहीं खुला
चाभियों का रहस्य
चला गया पिता के साथ
उनकी विरासत का मूल्य
बाल सफेद होते-होते समझ आया
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|रचनाकार=लीलाधर मंडलोई
|संग्रह=लिखे में दुक्ख / लीलाधर मंडलोई
}}
<poem>
पिता ने मुझे विरासत में
कई चाभियां दी
मैं एक-एक कर खोलता रहा दरवाजे
दुनिया का कोई दरवाजा
मेरी चाभी से नहीं खुला
चाभियों का रहस्य
चला गया पिता के साथ
उनकी विरासत का मूल्य
बाल सफेद होते-होते समझ आया