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अनश्‍वर / लीलाधर मंडलोई

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<poem>

सब कुछ के बावजूद
भूलता जाता हूं
इधर के स्‍वाद सुख

ढाबे से फेंकी गई
जली रोटियों की सुगन्‍ध
और कठिन दिनों में
उनका दिव्‍य स्‍वाद

इतना अधिक जीवित
जैसे अनश्‍वर
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