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नया पृष्ठ: फोन पर<br /> बातें न करना<br /> चिट्ठियाँ लिखना।<br /> हो गया<br /> मुश्किल शहर …
फोन पर<br />
बातें न करना<br />
चिट्ठियाँ लिखना।<br />
हो गया<br />
मुश्किल शहर में<br />
डाकिया दिखना।<br />

चिट्ठियों में<br />
लिखे अक्षर<br />
मुश्किलों में काम आते हैं,<br />
हम कभी रखते<br />
किताबों में इन्हें<br />
कभी सीने से लगाते हैं,<br />
चिट्ठियाँ होतीं<br />
सुनहरे<br />
वक्त का सपना।<br />

इन चिट्ठियों<br />
से भी महकते<br />
फूल झरते हैं,<br />
शब्द<br />
होठों की तरह ही<br />
बात करते हैं<br />
ये हाल सबका<br />
पूछतीं<br />
हो गैर या अपना।<br />

चिट्ठियाँ जब<br />
फेंकता है डाकिया<br />
चूड़ियों सी खनखनाती हैं,<br />
तोड़ती हैं<br />
कठिन सूनापन<br />
स्वप्न आँखों में सजाती हैं,<br />
याद करके<br />
इन्हें रोना या<br />
कभी हँसना।<br />

वक्त पर<br />
ये चिट्ठियाँ<br />
हर रंग के चश्में लगाती हैं,<br />

दिल मिले<br />
तो ये समन्दर<br />
सरहदों के पार जाती हैं,<br />

चिट्ठियाँ हों<br />
इन्द्रधनुषी<br />
रंग भर इतना।<br />