भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू }} <poem> झ…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह=लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू
}}
<poem>

झमाझम लौटते हुए उसने नीचे देखा
वहाँ यक्षिणी सोते के पास नहा रही
देखता रहा एक बरस पहले तक.
एक बरस, दो बरस, जब तक ज़मीन के टकराने से
पहाड़ बना. यक्षिणी के गीत के बोल पहाड़ से टकरा
लावा बन फूट पड़े. वह गीत उसकी यात्राओं में मिले
अनन्त लोगों का गीत.

यक्षिणी नीचे झुकी तो पूरी धरती पर काम करते लोग झुके.
उनके झुकने से धरती झुकी. गीत के बोल गुनगुनाता बिखरा वह.
लौटते मानसून में दुखों के झुण्ड में वाष्प के कण
बिखरे इधर उधर, एक बरस, दो बरस, जब तक ज़मीन
टुकड़ों में बिखर जाएगी, राजा प्रजा सभी बन जाएँगे
वाष्प के कण.
778
edits