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हमारे बीच / लाल्टू

90 bytes added, 06:46, 11 अक्टूबर 2010
{{KKRachna
|रचनाकार=लाल्टू
|संग्रह= लोग ही चुनेंगे रंग / लाल्टू}}{{KKCatKavita‎}}<poem>जानती थीकि कभी हमारी राहें दुबारा टकराएंगींटकराएँगीं
चाहती थी
तुम्हें कविता में भूल जाऊँ
भूलती-भूलती भुलक्कड़ -सी इस ओर आ बैठी
जहाँ तुम्हारी डगर को होना था ।
मैं अपनी ज़िद पर चली जा रही हूँ
चाहती हुई कि एकबार वापस बुला लो
कहीं कोई और नहीं तो हम दो ही उठाएंगेउठाएँगे
कविताओं के पोस्टर ।
हमारे बीच मौजूद है
एक कठोर गोल धरती का
उभरा हुआ सीना ।</poem>
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