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रचनाकार=संजय मिश्रा शौक
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अम्न की दीवार में दर हो गये
जंग-जू जब से कबूतर हो गये

आज फिर पानी गले तक आ गया
हाथ अपने आप ऊपर हो गये

मैं भिकारी हो गया तो क्या हुआ
मांगने वाले तवंगर हो गये

दीद-ए-नमनाक से आंसू गिरे
और चकनाचूर पत्थर हो गये

शौक इन आँखों का है सारा कुसूर
जागते ही ख्वाब बेघर हो गये</poem>