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एक ही दफे नहीं-
कई-कई दफे देखा है मैंने उसे।
जब-जब देखा है मैंने उसे-
लकदक लिबास में देखा है मैंने उसे।
काफी हाउस में देखा है मैंने उसे;गुलगपाड़े में गुलगपाड़ा करतेदेखा है मैंने उसे। यह सच है किजो उसे सिगरेट पिलाता हैवह उसेमंत्री कहकर पुकारता है,क्योंकि वहधुँए के धुँधलके में रहने सेतमाम-तमाम निजी तकलीफों मेंनिजात पाता है;मेहनत-मशक्कत से बच जाता है।यह भी सच है किजो उसे काफी पिलाता हैवह उसेमुख्यमंत्री कहकर पुकारता है,क्योंकि वहकाफी पीने के बादगुमराह हो जाने में सुख पाता है;गलत-सही में उसेकुछ फर्क नजर नहीं आता-और वहपिलाने वाले का अभिप्रायकतई नहीं समझ पाता। यह भी परम सच है किजो उसे डिनर मे बुलाताऔर सिनेमा दिखाता है,वह उसेप्रधानमंत्री कहकर पुकारता हैऔर तारीफ पर तारीफ के उसकेरंग-बिरंगे गुब्बारेजमीन से आसमान में पहुँचाता है, और अधेड़ उम्र में,अबोध बच्चे की तरहदेख-देखकर उन्हें,उनकी उड़ान में उड़ा चला जाता है,सौभाग्य के स्वर्ग में पहुँचकरखिलखिलाता है।यह भी परम सच है किउसे कोई फर्क नहीं मालूम होताकाफी हाउस के अधिवेशनऔरलोकसभा के अधिवेशन मेंक्योंकिएक ही तरह के-एक ही मनोवृत्ति के लोगइन दोनों जगहों में होते हैं;वही इन जगहों में एक जैसे होहल्ले केकारण होते हैं। रचनाकाल: ०५१२-०४-१९७९
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