गृह
बेतरतीब
ध्यानसूची
सेटिंग्स
लॉग इन करें
कविता कोश के बारे में
अस्वीकरण
Changes
लड़ते हुए सिपाही का गीत / ब्रजमोहन
No change in size
,
07:24, 19 अक्टूबर 2010
जब बैठे-बैठे आँखें भर आएँ दुख से
फिर सोचना, दिन कैसे बीतेंगे सुख से
दुख की लकीरें मिट
जाएंगी
जाएँगी
मुख से
सूरज-सा उगने की रीत बनो रे
अनिल जनविजय
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,382
edits