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जब बैठे-बैठे आँखें भर आएँ दुख से
फिर सोचना, दिन कैसे बीतेंगे सुख से
दुख की लकीरें मिट जाएंगी जाएँगी मुख से
सूरज-सा उगने की रीत बनो रे
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