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16:10, 20 अक्टूबर 2010 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= श्रद्धा जैन
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प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन
हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन
जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन
लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन
जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन
खो गए वस्ल के लम्हे "श्रद्धा"
मूंद मत आँख, ये क्या पागलपन
</poem>
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