भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
बुदबुदाया शहर में आ कर फ़कीर
क्यूँ चला आया मैं जंगल छोड छोड़ कर
कौन देगा अब उसे मेरा पता
कैसे मैं लाऊँगा उस को ढूँढ ढूँढ़ कर
फिर मुरव्वत में किया उस पर 'यक़ीन'
फिर समझ बैठा हूँ उस को मोतबर
</poem>