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Kavita Kosh से
मोह को घर-बार के मत साथ में लेकर चलो
यात्रा से जब भी लौटोगे तो घर आ जाएगा
सीढि़याँ चढ़ते रहो, अंतिम शिखर आ जाएगा
'''2.
हर दिशा से तीर बरसे, घाव भी लगते रहे
दोस्त! कस-बल की नहीं, यह हौसले की बात है
कितना छोटा था दिया, पर रात से लड़ता रहा
'''5.
आदमी कठिनाइयों में जी न ले तो बात है
एक उँगली भर की बाती और पर्वत जैसी रात
सुबह तक यह कालिमा को पी न ले तो बात है
'''7.
ढलानों पर, रुका दरिया फ़िसलना सीख लेता है
सुगंधित पत्र पाकर उसका मैं सोचा किया पहरों
मिले खुशबू तो कागज भी महकना सीख लेता है
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