भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मोह को घर-बार के मत साथ में लेकर चलो
यात्रा से जब भी लौटोगे तो घर आ जाएगा
सिर्फ सिर्फ़ साहस ही नहीं, धीरज भी तो दरकार है
सीढि़याँ चढ़ते रहो, अंतिम शिखर आ जाएगा
'''2.
हर दिशा से तीर बरसे, घाव भी लगते रहे
जिंदगी ज़िंदगी भर दिल मेरा आघात से लड़ता रहा
दोस्त! कस-बल की नहीं, यह हौसले की बात है
कितना छोटा था दिया, पर रात से लड़ता रहा
'''5.
आदमी कठिनाइयों में जी न ले तो बात है
जिंदगी ज़िंदगी हर घाव अपना सी न ले तो बात है
एक उँगली भर की बाती और पर्वत जैसी रात
सुबह तक यह कालिमा को पी न ले तो बात है
'''7.
असिल असल परछाईं भी क्या है, उजाला सीख लेता है
ढलानों पर, रुका दरिया फ़िसलना सीख लेता है
सुगंधित पत्र पाकर उसका मैं सोचा किया पहरों
मिले खुशबू तो कागज भी महकना सीख लेता है
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,708
edits