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:स्याह-सफ़ेद डालकर साए:मेरा रंग पूछने आए ! 
मैं अपने में कोरा-सादा
मेरा कोई नहीं इरादा
ठोकर मर-मारकर तुमने
बंजर उर में शूल उगाए:स्याह-सफ़ेद डालकर साए:मेरा रंग पूछने आए ! 
मेरी निंदियारी आँखों का-
कोई स्वप्न नहीं; पाँखों का-
गहन गगन से रहा न नता,
क्यों तुमने तारे तुड़वाए ।
:स्याह-सफ़ेद डालकर साए
:मेरा रंग पूछने आए !
मेरी बर्फ़ीली आहों का
बुझी धुआँती-सी चाहों का-
क्या था? घर में आग लगाकर
तुमने बाहर दिए जलाए !
:स्याह-सफ़ेद डालकर साए
:मेरा रंग पूछने आए !
</poem>
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