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{{KKRachna
|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल
|संग्रह=आग का आईना / केदारनाथ अग्रवाल
}}
आए
और चले गए
सुखशाई दिन
छूकर मुझे
देकर दुखदाई
अंधकार
भरमार
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल
|संग्रह=आग का आईना / केदारनाथ अग्रवाल; कुहकी कोयल खड़े पेड़ की देह / केदारनाथ अग्रवाल
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
छूँछे घड़े
::बाट के टूटे
ऊँचे नहीं--
::पड़े हैं नीचे
कभी जिन्होंने
::पौधे सींचे
अब
::मन चीते
हाथ गहे के
::वे दिन बीते
अंक लगे के
::शीस चढ़े के
सपने रीते